INDIAN CULTURE AND ART भारतीय संस्कृति और कला
यदि विश्व में प्राचीनतम संस्कृति का नाम लें तो भारत का स्थान अव्वल नम्बर पर आता है यही बात भारत को सम्पूर्ण विश्व से विशेष बनाती है और भारत की संस्कृति की बात करें तो ‘एकता में विविधता की’ या हमें एक साथ अलग-अलग बहुत सी संस्कृतियों की बात करनी होगी। क्योंकि भारत की संस्कृति कई संस्कृतियों का संगम है। भारत की विविधता हीे उसको संसार की अनेकों खूबियों से नमाज़ती है। जिसको निम्न भागों में आंका जा सकता है जैसे उत्तर भारत की संसकृति, दक्षिण भारत की संस्कृति, पश्चिम में गुजरात और मराठा संस्कृति, पूर्व में बंगाल और मध्य में राजस्थानी संस्कृति की विषेशतायें देश के मष्तक को सजातीं हैं। ठीक इसी प्रकार देश की ऋतुएं भी मौसम बदल कर अपनी खूबसूरती से मानो उस मश्तक को तिलक लगाकर सजातीं हैं। प्रत्येक राज्य की संस्कृति में शामिल भाषा, नृत्य, पोशाक, खान-पान, जीवन शैली, मिट्टी, नदियॉं, भौगौलिक परिवेश और अपने अन्दर समेटे प्राकृतिक सम्पदाओं के अनमोल खजानों के बल पर देश के विशालतम हृदय की गणना कराते हैं। प्रचीन दृश्टिकोंण और समय की मार से मार्डन समय के अन्तराल तक में भी भारत ने अपनी विविधता में एकता को बखूवी संभाला है। आज हम भारतीय विशालतम संस्कृति के बारे में बात करेंगें। जो आज भी दूनियॉं के लिये आश्चर्य व आकर्षण का केन्द्र बनी हुई है।
1. अभिवादन Greetings
भारत प्राचीन सभ्यता का देश है। यहॉं की संस्कृति में शिष्टाचार, तहजीब, सभ्यता, धार्मिक संस्कार कूट-कूट कर भरे पढे है। भारत पुरातन से विभिन्नताओं से धनवान रहा है जिसका बेसक बेजोड नमूना देश के अलग-अलग धर्म, जाति और विभिन्न प्रकार की मान्यतायें हीे है जिनके अभिवादन और बधाई देने के तरीके भी भिन्न-भिन्न प्रकार के ही हैं। प्रमुखता से हिन्दू, जैन और बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों का अपने मेहमानों व अतिथियों का अभिवादन दोनों हाथ जोडकर और सिर झुकाकर ‘नमस्ते’ कह कर बडे ही आदर भाव से स्वागत किया जाता है प्रमुखता से भारत और नेपाल इस संस्कृति में शामिल हैं जो समाज में अपने प्रेम स्नेह की शीतलता को बिखेरने के लिये प्रचलित हैं। ठीक इसी प्रकार मेहमानें के विदा होते समस भी मोन रहकर और हाथ जोडकर उनके शब्दों का अभिवादन करते हैं यही अभिवादन आध्यात्म के क्षेत्र में शिष्य अपने गुरूओं को उपरोक्त की ही भॉंति प्रणाम करते हैं सामान्यतः विद्वानों के मत को मानें तो वे अपने अन्दर की विश्वशक्ति सामने वाले की विश्वशक्ति को आदर सत्कार करते है। और आज्ञा पालन, चरन वंदना, आदर, श्रद्धा, सदाचार, नैतिकता आदि से प्राचीनद्काल के समय से भारतीय उपमहाद्वीप के लोग अभिनन्दन करते चले आ रहे हैं।
धर्म और रीति-रिवाज Religion and Customs
भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है जिसमें किसी भी धर्म को मानने वाला समुदाय या व्यक्ति रह सकता है और उसको किसी भी धर्म को मानने की पूरी स्वतंत्रता है इसी कारण से भारत में विभिन्न धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं। भारत के धार्मिक होने के संकेत ईसा पूर्व से ही मिलते हैं जिसमें हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अलावा अन्य बौद्ध, जैन, और सिख धर्म प्रमुख हैं जिनके रीति-रिवाज़ों की अनूठी परम्पराओं के आधार पर ही संसार भारत को एक अलौकिक राश्ट्र की संज्ञा देता है। यहॉं की परम्पराओं की विविधता होने के बावजूद देश की एकता और अखंडता को बटट्ा लगाने वाले विरोधावास को कभी नहीं देखा गया है यहॉं की पराम्पराओं में भारत की अनौखी झलक वसती है। और देश अपनी परम्पराओं को अटूट श्रद्धा और भाव से मानता है।
सबसे अधिक हिन्दू धर्म जनसंख्या वाले भारतीय उपमहाद्वीप मे प्रागैतिहासिक धर्म को प्रमाणित करने वाले साक्ष्य विखेरे हुए मैसोलिथिक शैल चि़त्रों से प्राप्त होते हैं। भारतीय परम्पराओं के स्त्रोत सिंधु घाटी की सभ्यता (3300 से 1300 ईसा पूर्व) वैदिक धर्म से पहले, वैदिक काल (1750 से 500 ईसा पूर्व), वैदिक हिन्दू धर्म और पौराणिक हिन्दू धर्म के वीच एक महत्वूर्ण समय (800 से 200 ईसा पूर्व), पौराणिक काल और प्रारंभिक मध्य काल (200 से 500 ईसा पूर्व) प्रमुख माने जाते हैं
भारत की समृद्धता Prosperity of India
भारत बहुत पहले से एक समृद्ध राष्ट्र रहा है और भारत भ्रमण पर आये बहुत से दार्शिनिकों ने भारत को अलग-अलग नामें की संज्ञा दी है या कहना चाहिए कि भारत की विषेशताओं के लिये लोगों ने इसे अनगिनत उपनामों से नमाज़ा है। जैसे सोने की चिडिया, भारत, इण्डिया, जम्बूद्वीप, हिमवर्ष, हिन्द, अजनाभवर्श, आर्यावर्त, हिन्दुस्तान, देवभूमि इत्यादि-इत्यादि इस देश की भारत की तारीफ में गीतकार आनन्द राज आनन्द जी ने तो अपने मन के भाव गीतों के माध्यम से कुछ यॅू कह दिये है कि ‘इट्स हैपिन्ड ओनली इन इन्डिया’ प्जईचचमदमक वदसल पद प्दकपंण् इस लाईन का तात्पर्य है कि एैसा केवल भारत में ही होता है किसी और देश में नहीं क्योंकि भारत जैसी जलवायु, आध्यात्मिकता, वातावरण, संस्कृति, रीति रिव़ाज, ऋशि और गुरू जन देश की समृद्धता में अहम भूमिका निभाते चले आये हैं और उन्हीं की कठोर तपस्याओं से ही भारत विष्वगुरू है।
भारत के त्यौहार Festival of India
बडे हीे सम्मान जनक शब्दों में सारा संसार कहता है कि भारत त्यौहारों का देश है जहॉं नित ही नये-नेय त्यौहारों को मनाते है। अलग-अलग धर्मों के लोग अपने धर्मों के अनुसार उत्सवों व समारोहों का आयोजन करते रहते हैं जिसमें सभी धर्म के लोग बडचडकर हिस्सा लेकर उन्हें बडी धूम-धाम से मनाते हैं। देश के प्रत्येक राज्य के हिसाव से उनके त्यौहार भी अलग-अलग हैं जिस के अनुसार देश हर दिन त्यौहार मनाता है। देश के कुछ प्रमुख त्योहारों की सूची निम्नलिखत है जिससे आप ‘भारत एक त्यौहारों का देश है’ की परिभाशा को अच्छी तरह से समझ सकते हैं।
महीना |
त्यौहार |
जनवरी |
मकर संक्रांती |
जनवरी |
पोन्गल |
जनवरी |
बसंत पंचमी |
फरवरी |
महाशिवरात्री |
मार्च |
होली |
मार्च |
मेवार |
अप्रैल |
बैशाखी |
अप्रैल |
बीहू |
मई |
थिर्शिर पूरम |
मई |
बुधा जयन्ती |
अप्रैल |
ईद उल फित्र |
अप्रैल |
अम्बेदकर जयंती |
जून |
हेमिस |
जुलाई अगस्त |
गुरु पूर्निमा रक्षा बंधन |
अगस्त |
जन्माष्ठमी |
अगस्त |
स्वतंत्रता दिवस |
अगस्त |
ओनम |
सितम्बर |
गनेश चतुर्थी |
अक्टूवर |
नवरात्री |
अक्टूवर |
दुर्गा पूजा |
अक्टूवर |
दशहरा |
नवम्बर |
दीपावली |
नवम्बर |
गुरु पूरब |
दिसम्वर |
क्रिसमस |
दर्शन शास्त्र Philosophy
दर्शन शास्त्र का अंग्रेजी शाब्दिक अर्थ Phylosophy जो दो शब्दों से मिलकर बना है। (फिलॉस$सोफिया) फिलॉस्फी ;
च्ीपसवेवचीलद्ध जो दर्शाता है जीवन के अर्थ और मतों से सम्बंधित अध्ययन को या कह सकते है जीवन का अर्थ समझने वाले या नैतिक व्यवहार के नियमों का निर्धारण करने वाले जीवन दर्शन को, दूसरे षब्दों में दर्शन शास्त्र को परिभाषित किया जाये तो पाया जाता कि दर्शन शास्त्र उस कला को कहते हैं जो व्यापक अर्थ में दर्शन तर्कपूर्ण एवं क्रमबद्ध विचार के माध्यम से सत्य एवं ज्ञान का बोध करा सकने में परिपूर्ण हो। भारत में हुए दार्शनिकों के विषय में भी भारत दुनियॉं में नंबर एक पर आता है जिनके दर्शन शास्त्रों को आज भी देश-विदेशों में उनके अनुयाइयों के द्वारा माना जाता है प्राचीन भारत से आधुनिक भारत में दर्शन शास्त्रीयों ;च्ीपसवेवचीमतद्ध की बात करें तो बहुत लम्बी लिस्ट बनती है। जो निम्न प्रकार है-
क्रमांक समय दार्शनिक का नाम क्रमांक समय दार्शनिक का नाम
1. 600 ईसा पूर्व चार्वाक 2. 1540-1603 ददू
3. 590-510 ईसा पूर्व महावीरा 4. 1547-1614 मीराबाई
5. 560-480 ईसा पूर्व बुद्धा 6. 1588-1644 श्री नारायन भटट्ातीरी
7. 400 ईसा पूर्व जैमिनी 8. 1607-1649 तुकाराम
9. 400 ईसा पूर्व कानड 10. 1608-1681 राम दास
11. 400 ईसा पूर्व गौतम 12. 1608-1688 महात्मा तैलंग स्वामी
13. 299 ईसा पूर्व संत तिरुवल्लूवर 14. 1620 सिंगा जी
15. 600 ईसा नम्मल्वार 16. 1628-1700 संत बहिना बाई
17. 600-680 तिरुनावुक्कुरारावसू 18. 1666-1708 गुरु गोविंद सिंह
19. 660 श्री मनिकर्वासागर 20. 1703-1810 संत बुल्लेशाह
21. 700 भक्त कम्बान 22. 1759-1809 गौरी बाई
23. 788-828 शंकराचार्य 24. 1767-1847 श्री त्यागराज
25. 800 भास्कर 26. 1771-1833 राजा राम मोहन राय
27. 824-924 आचार्य नाथ मुनि 28. 1800-1880 स्वामी समर्थ अक्कलकोट
29. 900 गोरखनाथ 30. 1801-1882 जला राम बापू
31. 953-1053 यमुनाचार्य 32. 1817-1905 देवेंद्र नाथ टैगोर
33. 1017-1137 रामानुजाचार्य 34. 1817 मानिक प्रभू
35. 1100 अक्का महदेवी 36. 1818-1878 अगरा के सोआमी जी
37. 1105-1167 संत बसवेश्वर 38. 1824-1883 दयानंद सरस्वती
39. 1135-1229 ख्वाजा मुइनुद्दीन चिस्ती 40. 1828-1895 श्री लाहिडी महाशय
41. 1138-1162 निमबर्क 42. 1836-1886 रामक्रशना
43. 1172-1265 बाबा फरीदुद्दीन सकरगंज 44. 1839-1903 बाबाजी आफ़ बीस
45. 1186 बाबा कुतुबुद्दीन बख्तियार 46. 1838-1884 केशव चंद्रसेन
47. 1173-1266 सैख बाबा फरीद 48. 1840 तरी गोंडा वेंकम्बा
49. 1199-1278 माधवाचार्य 50. 1840-1905 आनन्दा मोहन बोस
51. 1200 जयदेव 52. 1918 साईं बाबा शिर्डी
53. 1238-1356 हजरत निज़ामुदीन औलिया 54. 1847-1925 सिरनाथ शास्त्री
55. 1253-1325 अमीर खुशरो 56. 1853-1920 माता शारदा देवी
57. 1270-1350 नाम देव 58. 1853-1924 श्री चटम्पी स्वामीकल
59. 1272-1293 संत जनेश्वर 60, 1855-1928 श्री नारायन गुरु
61. 1290-1381 शराफुद्दीन मनेरी 62. 1858-1948 सावन सिंह जी हुजूर महाराज
63. 1299-1410 रामानंदा 64. 1863-1902 स्वामी विवेकानंद
65. 1308-1399 लाल दीदी आफ कश्मीर 66. 1872-1950 श्री औरोबिंदो घोश
67. 1314-1384 सय्यद अली हमदानी 68. 1873-1906 राम तीर्थ
69. 1372-1450 श्री पोताना 70. 1910 गजानन महाराज आफ़ शेगाँव
पारिवारिक संरचना Family Structure
भारत को यूॅं ही नहीं विश्व धर्म गुरू का दर्जा देता है भारत को विविधताओं के आधार पर ही संसार ने अपने सौदाहर्यपूर्ण नजरिये को रखा है भारत की संस्कृति में समाज के पारिवारिक संरचना का भी महत्व है जिनमे संयुक्त परिवार और एकल परिवारों का विषेश महत्व माना जाता है देश की 80 प्रतशत आबादी गॉंवों मे ही निवास करती है और गॉवों में संयुक्त परविारों की परंपरा को बखूवी फलते फूलते देखा जा सकता है और गॉंवों में एक मान्यता के अनुसार परिवार संयुक्त होगें उतना ही समृद्धिवान होंगे। संयुक्त परिवार में माता, पिता, पुत्र, पुत्रबधू, पौत्र, परपौत्र और कुछ परिवारें में रिश्तेदार भी जैसे बहन-बहनोइ, बुआ-फूफा, मामा-मामी, मौसा-मौसी आदि लोग भी संयुक्त परविार का हिस्सा होते हैं।
विवाह Marriage
हिन्दू रीति रिवाज के हिसाव से विवाह शब्द का जनक वैदिक काल की परम्पराओं से माना जाता है विवाह का मतलव दो लोगों के पवित्र मिलन को कहा जाता है। कुछ धार्मिक मान्यताओं के अनुसार षादी का रिस्ता तो ईष्वर तय करता है। और ये सब विधि के विधान पर आधारित है। भारत विवाह के मामले में भी उत्क्रष्ट सम्मान से जाना जाता है विवाह की अनूठी परम्पराओं की मान्यताओं के रहते देश की एक अलग ही पहचान है भारतीय संस्कृति में भारतीय विवाह का बडा ही महत्व है बहुत से लोग विदेशों से भारत की रस्म में शादी करने के लिये भारत आते हैं भारतीय रीति के अनुसार शादियॉं को मुख्यतः विभिन्न भागों में बॉंटा जा सकता है।
1. तयशुदा शादी ( माता पिता द्वारा तय किया गया विवाह ) Arranged Marriage
2. प्रेम विवाह Love Marriage
3. बाल विवाह Child Marriage
4. गंधर्व विवाह Gandharv Marriage
5. वैदिक विवाह Vaidik Marriage
6. स्वंयवर Swyamvar
7. नगरिक और धार्मिक विवाह Civil and Religious Marriage
8. अतंधार्मिक विवाह Interfaith Marriage
9. आम कानूनी शादी Common-law Marriage
10. गुप्त विवाह Secret Marriage
11. समलैंगिक विवाह Same-sex Marriage
12. सुविधा विवाह Convenience Marriage
13. कोर्ट मैरिज Court Marriage
14. समयबद्ध विवाह Time Bound Marriage
प्रतीक Symbol
भारत उपवास और अपनी सारी परम्पराओं में अनोखा देष है भारतीय संस्कृति में व्रत का अपना अलग ही महत्व है। जिसके अनुसार व्यक्ति की ईमानदरी और संकल्प को पूर्ण करने का एक तरीका है जिसका माध्यम और साक्षी हमारे ईश्ठ और देवी-देवता होते हैं। व्रत रखने का सिलसिला पूरे साल धार्मिक अवसरों के रूप में बना रहता हैं करवा चौथ व्रत कथा तो सम्पूर्ण उत्तर भारत और मध्य भारत में बडे जारों से मनाया जाता है इसके अतिरिक्त माह में पूर्णिमा और अमावस्या के दिन को उपवास के रूप में मानते हैं सप्ताह के प्रत्येक दिन को किसी देवी देवताओं के नाम पर महिलायें व्रत रखतीं हैं। जिनके नियम उन्हीं देवी देवताओं के अनुसार होते हैं कहा जाता है कि उपवास के साथ लोग हवन, यज्ञ, और कई अनुश्ठानों का आयेजन भी व्रत रखकर या व्रत रखने के लिये करते हैं।
व्यंजन और भोजन Cuisine and Food
भारतीय संस्कृति व्यंजन और भोजन के क्षेत्र में भी दूनियॉं में अपना नाम रोषन किये हुए है यहॉं के खाने स्वादिश्ट तो होते ही हैं लेकिन इनके बनाने का तरीका भी सारी दुनियॉं से भिन्न होता है। गौरवतलव है कि भारत में विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं और उनके खान-पान और व्यंजन भी धर्मों के तरह अलग-अलग हैं
बात अगर सम्पूर्ण भारत के खाने की की जाये तो सबसे पहले उत्तर भारत अपने तीखे व मषालेदार व्यंजनो के लिये बहुत प्रसिद्ध है। जिसमें कष्मीरी खाना बहुत ही लजीज़ और मध्य एषिया के दावे को पूरा करता है जिसमें ‘साग’ बहुतायत प्रसिद्ध है जबकि पंजाब, हरियाणा, और उत्तर प्रदेष में आटा की चपाती और सब्जी, साग को बहुत अच्छा माना जाता है, जबकि पष्चिम भारत में गुजरात ओर राजस्थान में मिठाई को प्रमुखता से तथा चपाती, चावल, दाल और अचार को वरीयता दी जाती है इसके भिन्न महाराश्ट्र में पष्चिम और दक्षिण भारत के खाने के एक साथ दर्षन होते हैं जिसमें चावल चपाती और मछली प्रमुखता से खानें में प्रयुक्त होतीं हैं। अगर पूर्वी भारत के खाने का जायका लेना है तो बंगाली और असमियॉं षैली में बने खाने के साथ बंगाली मिठाई के भी जल्वेदार रसगुल्ले, संदेष, छम-छम को चाखने के बिना बछली, चावल और बैंम्बू सूट को खाने का कोई फायदा नहीं होगा वैसे ही दक्षिण भारत के खाने का जायका तो सम्पूर्ण भारत अपने अपने घरों पर रोज किसी न किसी रूप में लेता ही है। अपितु मेमने का स्टू, अप्पल, मालाबार, तले हुए झींगे, इडली डोसा, फिष मोली, और चावल पिट्टू, और मीठा नारियल पानी ओर दूध आदि खानों में से पूरे भारत में कोई न कोई खाना आपको भारतीय दावतों की षान बढाते हुए मिल ही जायेगा।
परंपरागत वेशभूशा Traditional Clothing
भारत धर्म, समुदाय, जाति के आधार पर देष के परिधान भी अलग-अलग हैं। विविधताओं के आधार पर भातीय संस्कृति का इतिहास से लेकर आज ‘वर्तमान’ तक पंरम्पराओं की वेशभूशा में भी भारत को आज भी देष-विदेष में जाना जाता है। भारत प्राचीन काल से सूत, रेषम पैदाकर व जानवरों से ऊन प्राप्त कर कपडे पहले बुने जाते थे फिर रंगकर वस्त्रों कों पहना जाता था जो ग्रीश्म और षुश्क मौसम में उपयोगी होते थे लगभग 400 ईसा पूर्व महाभारत में श्रीकृश्ण जी ने द्रौपदी के चीर हरण के समय कभी खत्म न होने वाला अंग वस्त्र दिया था।
भारत के नृत्य Dance of India
भारत में पूर्व से पष्चिम तथा उत्तर से दक्षिण तक के वीच में अलग-अलग मिटट्ी, और तरह-तरह की जलवायु, भिन्न प्रकार की बोली भाशाओं के साथ उम्दा संस्कृति के गर्व को संभाले अनेकों प्रदेषों में विभिन्न संस्कृति के नृत्यों के नन्हे से प्रौढ तक के सफर को वयॉं करते हैं। जिनके प्रर्दषन की घडी नये मौसमों के आगमन, बच्चों के जन्म दिन, शादी-व्याह, खुशी ओर त्योहारेां के मौके पर अपनी खुशी जाहिर करने और मनोरंजन के लिये किय जाता है।
अधिकतर राज्यों के लोक नृत्यों में नर्तक और नर्तकियां खुद गाना गाते हुए और अपने विशेष परिधानों व गहनों से लैस होकर नृत्य करते हैं जिसमें उनके ही सहयोगी बाद्ययंत्रों का प्रयोग करते हैं सभी राज्यों के लोग नृत्यों की सूची प्रस्तुत है-
राज्य | लोकनृत्य |
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अरुणाचल प्रदेश | मुखौटा, युद्ध नृत्य |
असम | कली गोपाल, खेल गोपाल, बिहू, राखल, बिहुआ, नटपूजा, चोंगली, चौंगवी, नागानृत्य, अंकियानाट |
आन्ध्र प्रदेश | मरदाला, कुम्भी, घंटामर्दाला छड़ी नृत्य, बात कम्भा, वीधी, मधुरी, ओट्टन तुल्लू, कालीयट्टम, कुडीयट्टम, भद्रकालि |
उड़ीसा | छऊ, पैका, सवारी, पुगनाट, धूमरा, जदूर, मुदारी, गरूड़ वाहन, ओडिसी |
उत्तर प्रदेश | रास लीला, नौंटंकी,थाली, पैता, जांगर, चापरी, करन, कजरी, चारकूला, |
उत्तराखंड | झूला, झोरा, कुमांयू |
कर्नाटक | यक्षगान, कुनीता, वीरगास्से, भूतकोला, कर्गा |
गुजरात | गणपतिभजन, डांडिया रास, गरबा, पणिहारी नृत्य, लास्य, टिप्पानी, अकोलिया, भवई |
गोवा | दकनी, खोल झगोर, मांडी |
जम्मू कश्मीर | राउफ, भदजास, हिकात |
झारखंड | करमा, सरहुल, छऊ, फिरकल, जट जाटिन, पाइका।। |
तमिलनाडु | कुम्भी, कावड़ी, कडागम, कोलाट्टम, पित्रल, कोआट्टम, भारतनाट्यम |
नागालैंड | रेगमा, चोंग नोगकेम, चिंता, कजरम, युद्धनृत्य, खैवालिंम, नूरालिप, कुर्सी नागा, चुमिके, दोहाई |
पंजाब | भांगडा, गिध्दा, कीकली |
पश्चिम बंगाल | राम भेसे, गम्भीरा, बाउल, जात्रा, कीर्तन, काठी, महाल, गम्भीरा, रायवेश, मरसिया |
बिहार | वैगा, जदूर, जाया, जट-जाटिन, माधी, मूका, लुझरी, विदायत, कीर्तनिया, पंवरिया, जातरा, सोहराई |
मणिपुर | चोंग, महारास, नटराज, लाई हरोबा, संखाल, वसंत रास, थाग्टा, पुगवालोग, कीतत्वम् |
मध्य प्रदेश | रीना, चौत, दिवारी, नवरानी, गोन्यो, सुआ, भगोरिया, करमों, पाली, डागला छेरिया, हूल्को मंदिरी, सैला, बिल्धा, टपाडी, गोडा |
महाराष्ट्र | मोनी, बोहदा, लेजम, लावनी, दहिकला, तमाशा, गणेश चतुर्थी, कौली, गफा, ललिता, मौरीधा |
मिजोरम | चेरोकान, पारखुपिला |
मेघालय | बागला लाहो |
राजस्थान | कठपुतली, धापाल, जिंदाद, पूगर, सुइसिनी, बगरिया, ख्याल, शकरिया, गोयिका, लीला, झूलनलीला, कामड़, चरी, चंग, फुदी, गीदड़, गैर पणिहारी, गणगौर |
लक्षदीप | परिचाकाली |
हरियाणा | भांगड़ा ,सांग, धमान |
हिमाचल प्रदेश | सांगला, चम्बा, डांगी, डंडा, नाव, डफ, धमान, थाली, जद्धा, छरवा, महाथू, छपेली |
पौराणिक कथायें Mythology
हिन्दू पौराणिक कथाओं की संख्या का विषालतम रूप है यह संस्कृत महाभारत, रामायण, पुराण आदि, तमिल-संगम साहित्य आदि तथा बहुत सी अनेक कृतियॉं भगवत पुराण जिसे पंचम बेद माना गया है तथा चार वेद ऋग्वेद, यतुर्वेद, अथर्ववेद और सामवेद प्रमुख हैं
मार्शल आर्ट Martial Art
दुनियॉं के लिये गुरू का दर्जा प्राप्त देष को अपनी प्राचीन धरोहर को सहेजना बडा ही कठिन हो जाता है वो भी तब जब वैदिक काल के बाद तेजी से दर्षनों का उदय हुआ था। जिनमें विभिन्न मताबलविंयो के अनुसार देष को मार्षल आर्ट जैसी अनमोल कला को खोकर वॉंकी पर ही संतुश्टि करनी पडी।
मार्षल आर्ट का प्रयोग सदियों से युद्धों और आत्म रक्षा के लिये लोग करते वास्तव में यह कला तो है ही अपितु यह एक कठोर तपस्या है जिसको पुरातन में संतों के गुरूकुलों में सिखया जाता था भारत में मार्षल आर्ट को निम्नलिखि नाम में से पुकार सकते हैं।
1. इंबुआन रेसलिंग
2. मुश्टि युद्ध
3. वरमा कलाई
4. नियुद्ध
5. मल्लयुद्ध
6. कुट्ट वारासाई
भाषा Language
भारत में बोली जाने वाली बहुत अधिक भाशाओं की विषेशता ने भारत को दुनियॉं से और अधिक निराला देष बना दिया है। जिसमें प्रादेषिक व अन्य भाशाओं को मिलाकर 1000 भाशायें भारत में बोली जातीं हैं। यदि प्रादेषिक भाशओं कों छोड दिया जाता है तो यह भाशायें 415 बोली जाने वाली भाशायें होतीे हैं तथा प्रादेषि भाशाओं को व बहुत कम संख्या में बाली जाने वाली को छोड दिया जाता है तो कुल प्रमुख भाशायें 216 रह जातीं हैं। जो मुख्य रूप सें भारत में प्रचलन में हैं भाशाओं की इतनी बडी संख्याओं के साथ भारत की अखण्डता पर कोई सक नहीं किया जा सकता है हिन्दुस्तान के प्रत्येक राज्य के नागरिक एक जुट होकर हिलमिल कर एक साथ रहते हैं।
कुछ मातृभाशाओं के साथ-साथ प्रादेषिक भाशाओं को मिलाकर 216 प्रमुख भाशाओं की कुल संख्या है। अनेकता में एकता वाली बात को सच करता भारत अपने अन्दर अनेकों अनेक खूबियों को सम्भाले हुए है इन सभी भाशाओं में से सम्पूर्ण देष की सरकारी कामकाज की केवल हिन्दी और अंग्रेजी ही दो भाशायें हैं। जबकि राज्यवार अपनी अलग अलग भाशाओं का प्रचलन अपने अनुरूप किया जाता है। भारत की प्रमुख भाषाओं की सूची निम्न प्रकार है।
1 |
31 |
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2 |
32 |
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3 |
33 |
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4 |
34 | हलाबी |
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5 |
35 |
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6 |
36 |
मिरी |
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7 |
37 |
मुंडा |
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8 |
38 |
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9 |
39 |
||
10 |
40 |
||
11 |
41 |
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12 |
42 |
||
13 |
43 |
||
14 |
44 |
||
15 |
45 |
||
16 |
46 |
||
17 |
47 |
||
18 |
48 |
||
19 |
49 |
||
20 |
50 |
||
21 |
51 |
||
22 |
52 |
||
23 |
53 |
||
24 |
54 |
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25 |
55 |
||
26 |
56 |
||
27 |
57 |
||
28 |
58 |
||
29 |
59 |
||
30 |
60 |
सेमा |
मातृ भाषा Mother Tongue
1 |
31 |
||
2 |
32 |
||
3 |
33 |
||
4 |
34 |
||
5 |
35 |
||
6 |
36 |
||
7 |
37 |
||
8 |
38 |
||
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क्षेत्रफल और जनसंख्या Area and Population
देश मे प्रथम जनगणना ब्रिटिस शासन में 1881 में हुई थी जो पूर्ण हो सकी थी किन्तु स्वतंत्र भारत गंणराज्य की जनगणना महारजिस्ट्रार एवं जनगणना आयुक्त ने 1948 की जनगणना अधिनियम के तहत 1951 में करायी थी। 26 जुलाई 2021 अब तक की 16 जनगणनायें हो चुकी हैं और 2021 तक भारत की जनगणना 1,394,420,224 है तथा भारत का कुल क्षेत्रफल 3,287,263 वर्ग किलोमीटर के साथ यह दुनियॉं का सातवॉं सबसे बडा देष है भारत की लम्बाई पूर्व से पष्चिम तक 2,933 किलोमीटर, उत्तर से दक्षिण तक 3,214 किलोमीटर, ताथा भूमि की सीमारेखा 1,5200 किलोमीटर व तटीय रेखा 7,516.6 किलोमीटर है
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