Spiritual Meaning in Hindi अध्यात्म का हिंदी में अर्थ, आध्यात्म के माध्यम से हर मुश्किल करें आसान

1-आध्यात्मिक का अर्थ क्या है?  What is The Meaning of Spiritual?

आध्यात्म अलग-अलग लोंगों व अलग-अलग जगहों के हिसाब से कई वर्णों में उल्लिखित हो सकता है हम ईश्वरीय सत्ता और उस परम ऊर्जा जिसे विश्वशक्ति के रूप में भी जानते हैं के व्यवहारिक वर्तनी और समस्त जीवों की भावनाओं, दिमाग, अंर्तसंबध से पारस्पररिक स्तर से जुडे रहने को आध्यात्म कह सकते हैं 

    अपितु आध्यात्मिकता अकेले ही इस यूनविर्स के उन तमाम प्रश्नों के उत्तर और रहस्यों को अपने आप में समेटे हुए है जिसे लोग मन्दिर,मस्जिद, गुरूद्वारा, चर्च, पूजा, अर्चना, आदि से अपने आप को जोडकर ही अश्वस्त हो जाते हैं मगर वास्तविक तौर पर आध्यात्म इस अदभुत, परालौकिक और रहस्यमयी ब्रहमाण्ड की उस उर्जा शक्ति को कहते हैं जिसका निरंतर दोहन करते रहने से हम परम शक्तिशाली, परम दयालू, परम कृपालू, विनम्र, अपार धैर्यवान और क्षमामयी उच्चतम व्यवहार के लिये आयोजन प्रस्तुत करते हैं और संसार के सभी आयामों का स्वंय नियंत्रण करने में सक्षम रहते हैं। 

2- आध्यात्म क्या है?  What is Spirituality

          आज प्रकृति के बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न के वारे में चर्चा करने का मौका श्री सत्गुरू देव भगवान से मिला है और तुम्हारे साथ-साथ मैं भी बहुत भाग्यशाली हॅूं। और ये प्रश्न दुनियां के प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में अपने श्री गुरू महाराज जी अथवा श्री सत्गुरू देव भगवान जी से अवश्य ही पॅूंछना चाहिए। क्योंकि कालांतर से आध्यात्म की धरोहर संतो के ही पास है एक मात्र वही इसके स्वामी हैं। आध्यात्मिक की चर्चा जेहन में आते ही कुछ खयाल अलग-अलग ही आते हैं जैसे कुछ तो बिना बताये ही प्रौढावस्था के कर्म की कुॅजी की पुस्तक, तो कोई दुनियाॅं से अन्तिम विदाई का एहसास करने जैसा अनुभव तो कोई नीरस जीवन व्यतीत करने जैसा लगता हैं। और वास्तव में संतो के शब्दों में कहा जाये तो हमारे जीवन की असल शुरूआत तो उसी दिन होती है जिस दिन हम  इस श्ब्द के बारे में समझ पाते है। उस अलख पिता परमात्मा जो संसार का रचैयता है, के साथ अपने सम्बंधों को स्थापित करने की शुरूआत करना और फिर उससे लगातार अपने सम्बंधों को प्रगाढ बनाने के इस प्रयास को, अपने जीवन को शुखमय बनाने और उस परम पिता परमात्मा को पाना ही जीवन का उद्देश्य है।

    आध्यात्मिकता से सम्बंधित कुछ तथ्यों के माध्यम से श्री सत्गुरू देव भगवान की अमृतमयी वाणी की फुहार इन पन्नों पर डाली गयी है। और उस फुहार की कृपामयी, करूणामयी, शीतल बयार जिस भी तन-मन को स्पर्श करती हुयी बहकर मन की ऊॅंचाईयों को छू लेगी सहसा उसे उसकी अनुभूति हो ही जायेगा जिस पर चिन्तन कर प्रकाशमयी होने की कोशिश करने का ध्येय हमेशा रखना ही एक आध्यात्मिक व्यक्तित्व की पहचान है।

3- धर्म में आध्यात्मिकता क्या है? What is spirituality in religion?

आध्यात्मिकता और धर्म को समय-समय पर आमने सामने पारस्परिक प्रतिस्पर्धा में खडा देखा गया है। जहाॅं आध्यात्मिकता को धर्म की सहिंताबध्दता, प्रामाणिकता, कठोरता, दमनकारी और स्थिरता जैसी अग्निपरीक्षाओं से गुजरकर पतझड होना पडा है अपितु इसकी जडें इतनी गहराई तक जमी हुईं हैं जिसके कारण लाखों-लाख पतझण भी कुछ नहीं कर सकते उस प्रकृति के अमिट और सर्वोच्च साधनों में से एक मेरू रज्ज मानी जाती है

     फिर भी धर्म की कटट्रर, ध्वनिमयी आलोचनाओं का सामना निरन्तर करते रहना पडा है। वैसे भी दुनियाॅं के सन्तों ने आध्यात्मिकता को सभी धर्मों, वेदों, पुराणों, और धर्मग्रंथों से ऊपर रखा है सच पूॅंछिये तो धर्म और आध्यात्मिकता में कोई मेल ही नहीं है। अपितु अध्यात्मिकता से धर्म का जन्म होते तो युगान्तरों से देखा गया है।   जिसका एक उदाहरण जब से पृथ्वी अस्तित्व में आयी है तब से और पता नहीं कब से आध्यात्मिकता को संतों, महापुरूशों ने इसको समय-समय पर जगजाहिर किया है। और धर्मों के सामने कालान्तर से अडिग खडे होकर खुद को गौरवान्वित करता रहा है। 

धर्म के प्रमुख दूसरे पहलू में देखा जाये तो मूर्ति पूजा, किसी चिन्हित एक विषेश स्थान, एक अलग प्रकार की अवधारणायें, सीमित और बाध्य जीवन शैली और विभिन्न प्रकार की विवशताओं को अपने दामन में लपेटे आध्यात्म को चुनौतियाॅं देता चला आया है। और ये विरोधी होने का दंस झेलता चला आ रहा है अगर व्यवहारिक दृश्टि से आध्यात्मिक को देखा जाये तो ध्यान, प्रार्थना, चिंतन, शीतलता, सत्य, और ईश्वरीय सत्ता की ओर बेवाक, पूर्ण प्रभावमयी व्यक्तित्व की रचना करता है। जबकि धर्म अपनी हटधर्मिता के सारे पूरक प्रभावी मूर्तिपूजक, आत्मा के होने न होने के विश्वाश के परे है जो अपनी अनिवार्यता को प्रमुख रूप से नकार नहीं सकता।

 4- मनोविज्ञान और आध्यात्मिकता क्या है? What is psychology and spirituality?

आज फिर शायद प्रकृति की ही पूरी मंशा होने का आभास ही इन महान शब्दों के तुलनात्मक वर्णन की आभा को प्रकट कर रहा है। जिन दो महाशास्त्रों, एक आध्यात्मिकशास्त्र जो पृथ्वी के अस्तित्व के साथ ही उदय हुआ या फिर सबसे पुराना आदिकाल का, और जिसमें ना तो अकेले मन वल्कि पूरे ब्रहमांण्ड के ज्ञान को अपने आप में समेटे सिद्धांतो की स्थापना कर प्रकृति के उन सभी सुलझे अनसुलझे सवालों के उत्तर जिन्हें कोई नहीं दे सकता, उन्हे वे वाक ही पूरा करता हैं।  तो दूसरा मनोविज्ञानशास्त्र जो मानो अभी कुछ समय पहले ही अस्तित्व में आया है। जो केवल मन की अवधारणाओं पर ही निर्मित वयानों पर टिका हैं जो केवल व्यक्ति के स्वभाव और क्रिया-प्रतिक्रिया, उसके भौतिक नफा नुकसान पर ही आधारित है लेकिन मन की सीमाओं को खोज पाना या उनके अन्तविहीन छोर तक न पहॅंच पाने की भी पूरी कवायत करता है जिसका अर्थपूर्ण प्रयास आने वाले समय में भी जारी रखा जाना चाहिए 


यदि बात आध्यात्मिकता की की जाये तो कहना गलत न होगा कि प्रकृति ने हमें अपने अनंत, अथाह ज्ञान के क्षेत्र में गोता लगाने के लिये समय-समय पर और हर समय अपने दोनो हाथ फैलाकर हमारा स्वागत किया है जिसकी क्षणिक अनुभूति पाने के लिये सदियों से संतों और महन्तों ने अपने प्राणों तक की परवाह न की है। और अपना सर्वस्व त्यागकर अपने आप को हमेशा के लिये एक अनिश्चिचित, वेअन्त साम्राज्य को समर्तिप कर दिया। आध्ययत्मिकता का क्षेत्र महज एक बात नहीं है वल्कि कहना अतिष्योक्ति न होगा कि सम्पूर्ण ब्रह्मण की यूनिवर्सिटी है जो अपने अन्दर इस कायनात के युगों-युगान्तरों यहाॅं तक कि पृथ्वी से पहले के भी ज्ञान को अपने अन्दर समेटे है जिसके लिये वह सदा से हमें सुस्वागतम कहती चली आ रही है जिसने उसका स्वागत स्वीकार किया है वह दुनियाॅं की भीड से अलग सितारे के समान चमक गया है। 
5- आध्यात्म का महत्व या आध्यात्म की जीवन में उपयोगिता। Importance of Spirituality or Utility of Spirituality in Life.

आध्यात्म दुनिया के सभी आयामों से परे है जो अपने आप में ब्र्ह्माण्ड के सम्पूर्ण अथाह ज्ञान को समेंटे है आध्यात्म की पराकाष्ठा रखने मात्र से नहीं बल्कि उसकी परम ऊॅंचाइयों पर खडे होकर अपने आप को पायेंगें तो अपने सारे उद्देष्य, परम शान्ति, आशा, और अर्थ की उच्च भावनाओं को महशूस कर सकते हैं, बेहतर आत्म विष्वाश, आत्म सम्मान, आत्मनियंत्रण के राजा बन सकते हैं आध्यात्म हमारे जीवन में सभी अनुभवों को समझने और सुलझाने में सिद्ध होगा अस्वस्थ्य होने की दसा मंे हमारे शरीर को निर्बलता का एहसास नहीं होने देता है इतना ही नहीं यदि आध्यात्मिक मनुष्य चाहे तो किसी असाध्य बीमारी का भी आध्यात्मिक व्यक्ति पर कोई प्रभाव नहीं रहता है। और आध्यात्मिक व्यक्ति का व्यक्तित्व एक प्रकाशपुॅंज के समान निरन्तर चमकता जाता है और उसका तेज पल-पल हर पल एहसास कराता है जिसकी चमक की भनक अनायास ही सदियों से पहाडों और गुफाओं में  अन्र्तध्यान सन्तजनों और महापुरूशों को लग जाती है और आध्यात्मिक व्यतित्व वाले मनुष्य को ही सिद्ध आश्रम जैसी अलौकिक और तीसरे आयाम वाले रहस्यों का पता चल जाता है इस दुनियाॅं के अनेकों रहस्यों से पर्दा हट जाता है मानो हमारे और प्रकृति के बीच कुछ बाॅंकी ही न रहा हो। 

    अगर गौर से देखा जाये तो हमारा जीवन ही आध्यात्म का सुख भोगने के लिये ही है यदि मानें तो आध्यात्म का हमारे जीवन में बहुत ही महत्व है।

            इस अन्त विहीन दुनियाॅं के अनेको-अनेक पहलुओं से अपने आप को निकालकर या कहना चाहिए बचाकर जो समय हम अपने आप को जानने के लिये निकाल सकने को तत्पर बने रहने की जरूरत ही उस परम सत्ता की ओर ले जाने में सहायक होती है और जिस घडी हम ध्यान मग्न एकाग्र होकर बैठेंगे तो जो आनन्द प्राप्त होगा वही सत्य बोध करा सकने में परम सिद्ध सावित होगा और फिर अपने जीवन में अचंभित करने वाले परिवर्तनों को हृदयास्पर्षी दृश्टि से निहारने के उस उपयोगी परिकल्पना का सुख प्राप्त होगा उस घडी आध्यात्म का महत्व हमारे जीवन में सर्वोच्च सावित होगा और फिर देश दुनियां में अपने आप को सावित करने में भी आध्यात्म का बडा ही महत्व है।



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