I DON'T KNOW मुझे नहींं पता, मैं नहीं जानता, एक जबाव में छुपा है सबकुछ

 

          संसार में सारा खेल ज्ञान का ही है जो किसी विषय वस्तु और तथ्यों के बारे में जानना और किसी विद्यालय, गुरूकुल, मदरसा आदि ज्ञानार्जन वाले किसी भी स्थान धर्म समुदाय से लिया जा सकता है इसांन के जीवन में जानकारी बहुत महत्व रखती है या यॅू कहना गलत न होगा कि मनुश्य के जीवन में जानकारी ही सब कुछ है। कुछ लोग तो बडे ही झटके से कह देते है "आई डोंट नो" क्यों .........है किसी के पास इसका जबाव शायद हम सब का एक ही जबाव होगा कि उसे जनकारी नहीं होगी लेकिन क्या कोई बतायेगा कि उसको जानकारी न होने का कारण क्या है मैं, आप, उसके माता-पिता, या फिर ये समाज जिसमें उसने अपना बचपन से लेकर प्रौढावस्था तक का समय बिताया है। या फिर ईश्वरीय सत्ता जिसे संसार मानता है। नहीं जी शिष्टाचार और वेदोंं की भाषा कहती है कि इसके लिये सिर्फ और सिर्फ वह स्वयं ही जिम्मेदार है।, कि उसने ज्ञानार्जन का प्रयास ही नहींं किया। नहीं तो वह संसार के किसी भी पहलू से अंजान न रहता हम अपना सारा खेल स्वयं ही खराब करते हैंं। और  इसी के बलबूते उसका जीवन बनता और बिगडता है जानकारी से ही उसका भविश्य तय होता है और उसका जीवन सुखमय होगा या दुख में बीतेगा सब जानकारी के ही हाथों में है जीवन की हर एक छोटी से छौटी व बडी से बडी बात घटना-दुर्घटना सब जानकारी पर ही निर्भर करता है। जन्म से मृत्यु तक का सफर यह सब भी जानकारी ही के पहलुओं से अग्नि परीक्षा देता हुआ अपने अन्तिम पडाव पर पहुॅंचता है जानकारी किन-किन क्षेत्रों में होनी चहिए जानकारी किस प्रकार प्राप्त कर सकते हैं जानकारी के स्त्रोत क्या हैं और हमारे  जीवन में जानकारी देने वाले हमारे सहयोगी कौन-कौन हैं। व इससे जुडे सभी पहलुओं पर हम विस्तृत जानकारी लेकर आयें हैं। जो आपके लिये बहुत उपयोगी साबित होगी जिससे आपका जीवन सुखमय बीतेगा।

1. आई नो I Know

       बडी सहजता से लोग कह देते है। ‘आई नो’ लेकिन क्या वास्तव में वो सही कहते हैं यदि उसका उत्तर ‘हाॅ’ हैं तो फिर किसी और से कुछ पूॅंछने की आवष्यकता नहीं है और ना हीं किसी से कुछ कहने की आवष्यकता है। और उसका उत्तर यदि ‘नहीं’ हैं तो किसी और को क्या आवष्यकता है कि वह किसी को ज्ञान बाॅंटता फिरे लेकिन प्रकृति के नियमों में आदान प्रदान ही सर्वोपरि है जैसे इंसान जीवन भर लेता ही रहता हैं जन्म लेता, फिर जीवित रहने के लिये साॅंस लेता है, बडे होने के लिये दाना पानी लेता है, चलना सीखने के लिये सहारा लेता है, संसार में जीवन यापन करने के लिये ज्ञान लेता है कि उसे क्या खाना चाहिए,उसे क्या-क्या करना चाहिए, उसे कहाॅं-कहाॅं जाना चाहिए, उसे पैसे कमाने के लिये क्या-क्या करना चाहिए और क्या नहीं, उसे समाज में बने रहने के लिये किन-किन बातो को ध्यान में रखना चाहिए इत्यादि इत्यादि। इसको कई भागों में विभाजित किया जा सकता है। 

2.1 नाॅलेज- Knowledge

      अपनी प्रकृति की बात करें तो सम्पूर्ण ज्ञान का अथाह सागर अपने अन्दर समाये विल्कुल षान्त मूक बन ज्ञानोत्सर्जन करती रहती है जो समझ सकते हैं वह उसके कण-कण से ज्ञान के सागर की कुछ बॅूंदों का दोहन कर पान करते रहते हैं जो वास्तविक नाॅलेज तथ्यों से उजागर होती है और उसका आधार विष्वास होता है जो सत्यता की खरी कसौटी पर उतरकर सर्वोच्च सन्तुश्टि प्रदान करती है जिसका एक पहलू न्यायसंगत, न्यायोचित होता है। तो दूसरा पहलू सिद्धान्त की अभिव्यक्ति को उजागर करता है। जिसमें कतई तर्क को षामिल नहीं किया जा सकता। नाॅलेज तो स्वयं में एकत्व के स्वामित्व पर राज्य करती हैं जिसे  
      किसी भी तर्क संगत शब्दों से तौला नहीं जा सकता है यही अटल सत्य और विष्वास से परिपूर्ण है। आमतौर पर ज्ञान को समझा जाये तो ज्ञान रूपी वृक्ष की जडें इस    प्रकृति के कण-कण में विद्यमान है। जिसकी परिकल्पना करना सहज नहीं है इस वायु,    आकास, जल, थल और प्रकाश से परिपूर्ण इस प्रकृति में ज्ञान की ही धारायें चहॅूं ओर   बह रहीं हैं जिसे प्राप्त करने के लिये योग साधन ही मुख्य और एक मात्र साधन है।
नाॅलेज किसी भी रूप में हो हमारे जीवन के लिये बहुमूल्य साबित होती है। 

2.2 व्यवहारिक ज्ञान Practical Knowledge

       व्यवहारिक जानकारी नित प्रतिदिन के व्यवहार से पैदा होती है नाॅलेज को संज्ञान से जोडकर उसकी अभिव्यक्ति नहीं की जा सकती है। ज्ञान को कई रूपो में देखा जा सकता है जैसे अपने दौनों पैरों पर खडे होकर दौडते हुए खेलकूद करना या जिस किसी कार्य को करने पर जो जानकारी प्राप्त होती है वह व्यवहारिक ज्ञान कहा जाता है जो तर्क संगति और तकनीकी ज्ञान को बढाता है सांसारिक ज्ञान जो हमें एक दूसरे से व्यवहार से प्राप्त होता है यदि कोई उसे न बताये तब भी वह अपने आप में निपुण हो जाता है 

2.3 आत्म ज्ञान Self Knowledge    spiritual

                संसारिक दृश्टि से देखा जाये तो यह प्रकृति का सर्वोच्चतम ज्ञान माना जाता है जो इस यूनिवर्स का सर्वश्रेश्ठ मानव देह रखने वाला प्राणी ही प्राप्त कर सकता है। वह सिर्फ और सिर्फ मनुश्य ही है जो पंचतत्व के पारस्परिक समागम से इंद्रियों के जगाने या उनके सक्रिय होने पर प्रकाषपुंज के रूप में समायोजित रहता है जिसे आत्म ज्ञान कहा जाता है जिसको परिभाशित करने के लिये किसी के देह और आन्तरिक मनोदसा की व्याख्या करना आवष्यक नहीं है। यह तत्व ज्ञान है जो किसी के आत्म-मूल्यांकन की तुलनात्मक व्याख्या से आंका जा सकता है यह आत्म षक्ति है जो इंसान की दुनियाॅं बदल सकती है जब आदमी को अपना ज्ञान हो जाता है।spiritual तब वह अपने आप को उस प्रकृति का हिस्सा समझने लगता है और स्वंय में सर्वषक्तिमान हो जाता है जिसके सोचने,समझने, और खुद पर नियंत्रण करने की दक्षता चमत्कारिक ढंग से विकसित हो जाती है।

2.3 स्थिती ज्ञान Situated Knowledge

जब हम व्यवहारिक और स्वयं के ज्ञान को किसी विषेश या पारस्थिति के रूप में अमल में लाते हैं तो स्थिति ज्ञान कहा जाता है। यह विपरीत व सामान्य स्थिति में अथवा किसी भी परिस्थिति में हमारे द्वारा प्रयोग में लाया जाता है जिसका पूर्वानुमान न लगाया जा सकता हो सम या विशम परिस्थिति में जैसा हम सोचते और व्यवहार करते हैं वहीं स्थिति को दर्शाता है समकालीन जानकारी कही जा सकती है 

2.4 व्यावसायिक ज्ञान Professional Knowledge

एक सफल व्यवसायी के लक्षण या गुणों के बारे में बात की जाये तो विल्कुल भी इस बात से परहेज न किया जावेगा कि वह एक पेषेवर व्यवसाय का ज्ञान रखता है या एक कौषल का ज्ञान रखता है या फिर एक प्रबंधन रणनीतियों की श्रंखला का ज्ञान रखता है वैसे तो व्यवसाय हर एक छोटे से छोटा कौषल फिर चाहे वह ताले में चाबी डालने जैसा ही क्यों न हो क्योंकि व्यावसायिक षिषुक्षु षिक्षण प्रबंधन श्रंखला प्रणाली का उपयोग कर व्यवसाय का उच्च ज्ञान रखते हैं। उसे हम व्यावसायिक ज्ञान कह सकते हैं। 

2.5 ज्ञान के स्त्रोत Source Of Knowledge

         वास्तविक तौर पर ज्ञान का स्त्रोत इस ब्रहमाण्ड से अलग और कुछ हो ही नहीं सकता लेकिन सैद्धान्तिक रूप से हमारे शरीर में नाक, कान, हाथ, पैर, मुॅंह, जिभ्या , आॅंख, त्वचा, तथ्य, सत्य, विवेचनाओं को कहते हैं तथ्यों को शब्दार्थिक परिभाषा से भी केन्द्रित किया जा सकता है मानसिक विचारों को धारण करने की अनुभूति ओर स्मूति, पर आत्मनिरीक्षण ज्ञान का अपमार्जन है अवलोकन की स्थिति में या ज्ञानेन्द्रियों के उपयोग को एक महत्वपूर्ण ज्ञान का स्त्रोत कहा जाता है। 

2. ज्ञान का प्रतीक Symbol of Knowledge

इस जानकारी से परिपूर्ण संसार में आना फिर यॅंूही चले जाना भला ये क्या बात हुई सबको मौका और सब कुछ बराबर दिया है हमें इस प्रकृति ने अगर बात है तो सिर्फ हमें अपने और अपनी प्रकृति को आदर और आमंत्रण करने की वह हमारे लिये तो पहले से ही अपने हाथों को फैलाये है इसके सबूत कुछ लोगों ने दुनियाॅं को कई वार दिये है जिन्हे नाॅलेज आफ सिम्बल कहा जाता है
1. डा0 बी आर0 अम्बेदकर Dr. B.R.Ambedakar
2. इसाक न्यूटन Isaac Newton
3. गैलीलियो गैलीली Galilio Galilie
4. आर्यभटट्  Aryabhatta
5. थाॅमस् एल्वा एडिसन Thomas Alva Edison
6. लीओनार्डो डा विंसी Leonardo Da Vinci
7. स्टीफन हाॅकिंग Stephen Howking
8. टैरांस ट्ता Terance Tao
9. क्रिस्टोफर लगांन Cristopher Langan
10. किम-उंग-युंग Kim-Ung-Yung


No comments

Powered by Blogger.